क - किसी बात को कहने की दो अपेक्षाएँ।
पहली अपेक्षा - कोई विकल्पपूर्वक कोई बात कहता है कि "मैं ये कार्य इतनी तारीख तक पूरा कर लूंगा।" इस प्रकार से बात कहने में उसकी कर्तृत्व मान्यता झलकती है और वह अपने को पर पदार्थों का कर्ता मानता है।
दूसरी अपेक्षा - कोई अन्य विकल्पपूर्वक कोई बात कहता है कि "मुझे इस कार्य के इस समय तक होने का विकल्प हुआ है और यदि वह कार्य उतने समय तक अपनी शक्ति पूर्वक हो जावे, अन्यथा नहीं होवे तो उस कार्य के होंने के लिए पांच समवाय अभी प्राप्त नहीं हुए।" इस प्रकार से बात कहने में उस व्यक्ति की अकर्तृत्व मान्यता स्पष्ट झलकती है और वह, पर द्रव्यों का ही नहीं उसे जो विकल्प हो रहे हैं उनका भी कर्ता स्वयं को नहीं मानता।
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