स - समाधि मरण के समय में तो बहुत दुख होता होगा?

समाधि मरण के समय में तो बहुत दुख होता होगा? 

मरण तो एक समय का कार्य है उसमें कैसा दुख। समाधि का अर्थ समता होता है। यदि सम्पूर्ण जीवन समाधिमय अर्थात समता पूर्वक व्यतीत होवे तो मरण समय में समाधि तो सहज ही हो जावे और मरण समाधि मय ही कहा जावे। अतः समाधिमरण के समय में यदि दुख होता है तो उसका मुख्य कारण उन समय के कर्मों का उदय कहलायेगा। जैसे मरण के समय में परलोक का भय इत्यादि अवस्थाएं उन समय के कर्मों का उदय और व्यक्ति की कर्मों के प्रति आधीनता के कारण होगी। अतः समाधि होवे तो पूर्ण जीवन ही समाधिमय हो जावे तो अच्छा है और यदि मरण समय में समाधि की इच्छा है तो मरण कब किसका हो जावे ये तो किसी को भी ज्ञात नहीं है यदि ज्ञात है और समाधिमरण करना चाहते हो तो रत्नकरण्ड श्रावकाचार नामक ग्रन्थ सदासुख दास जी की टीका सहित उसके सल्लेखना अधिकार को पढ़ना चाहिए। और समाधि को जीवन में अपनाना चाहते हो तो डॉ. हुकमचन्द भारिल्ल द्वारा रचित कृति समाधि का सार का अध्ययन करना चाहिए। आपके सवालों के जबाब इन दोनों कृतियों में और अधिक स्पष्टता से मिल सकते हैं। 
धन्यवाद।

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