म - मन के अंदर के दो द्वंद्व।
पहला- जब मन को अशान्त करने वाला कोई विचार आवे तब एक ऐसा विचार आता है कि 'क्यों विचार कर रहे हो, छोड़ो ना', एक इस प्रकार का द्वंद्व ।
दूसरा - जब अध्यात्म का ज्ञान हो जाता है तब उसी अशांत विचार के लिए एक अन्य विचार आता है 'सहज स्वीकार करो, जैसे कर्म बंधने होंगे वैसा ही तो विचार आया है। उसकी अपनी योग्यता है। तुम उस विचार को लाने में, उसे शांत करने में कुछ नहीं करते हो, उसे तो जब शांत होना होगा तभी स्वतः हो जाएगा' एक इस प्रकार का द्वंद्व अब (कर्तृत्व के लिए क्षमा) हमें निर्णय करना है कि हमें किस द्वंद्व का साथ देना है।
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