ज - जैन धर्म की नींव
बचपन में सजीव - अजीव को विलोम रूप से पढ़ाया जाता था। उसे जैन धर्म की नींव कहना इस प्रकार सार्थक है कि सजीव का अर्थ - जीव सहित होना और अजीव का अर्थ - जीव रहित होना। तो जैन धर्म के सिद्धान्तानुसार देह और आत्मा (जीव) भिन्न है और सजीव का अर्थ देह (इन्द्रिय सहित जो शारीरिक क्रिया करते हों) वाले बताया जाता था। तो जीव सहित देह; लेकिन जीव, देह से भिन्न है और देह, जीव से भिन्न है। अतः जब इन सिद्धांतों को पढ़ते हैं तब हमने अब तक क्या पढ़ा है? इस बात का निर्णय होकर इस निष्कर्ष पर जाते हैं कि वह ज्ञान हमारे कल्याण में कितना सार्थक है।
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